महाभारत का जिक्र होते ही सबको उसका सबसे निंदनीय हिस्सा द्रौपदी का चीरहरण जरूर याद आता है. द्रौपदी के चीरहरण के समय सभा के कई वरिष्ठ लोग भी मौजूद थे.
सभी वरिष्ठों की मौजूदगी के बावजूद किसी ने भी दुशासन को ऐसा घिनौना काम करने से नहीं रोका. इस दौरान असहाय द्रौपदी ने भीष्म पितामह से भी खुद को बचाने की गुहार लगाई थी.
बता दें कि भीष्म पितामह केवल पांडवों ही नहीं, कौरवों के भी पूजनीय थे. कहते हैं कि उनके कहने पर द्रौपदी का चीरहरण रुक सकता था.
सबकी नजरों के सामने अपमानित हुई द्रौपदी के मन में यह सवाल हमेशा रहा कि आखिर क्यों भीष्म पितामह ने उसका चीरहरण नहीं रोका? इतना ही नहीं, उनके जीवन के अंत समय में जब वह मृत्यु शैय्या पर लेटे थे तो द्रौपदी उनसे मिलने भी पहुंची थी.
उस समय नाराज द्रौपदी ने उनसे कहा कि आप ज्ञान की बात करते हैं लेकिन उस दिन सभा में जब चीरहरण हुआ तो वह सभा में चुप क्यों थे? रोका क्यों नहीं?
भीष्म पितामह ने जवाब देते हुए कहा कि मैं जानता था कि एक न एक दिन यह सवाल मेरे सामने जरूर आएगा.
द्रौपदी के सवाल का जवाब देते हुए भीष्म पितामह ने कहा कि मैं चाहता था कि इस अधर्म को रोक दूं पर नहीं रोक पाया क्योंकि मैंने दुर्योधन का अन्न खाया था.
दुष्ट और पापी इंसान का अन्न खाने से मेरी बुद्धि और मन उसी के अधीन हो गया था. यही वजह रही कि मैं अपनी आंखों के सामने अधर्म को नहीं रोक पाया.