Viral Photos: 90 का दशक आज की पीढ़ी के लिए शायद सिर्फ एक कहानी हो, लेकिन उस दौर में बड़े हुए बच्चों के लिए यह जादुई बचपन था. तब न मोबाइल था, न सोशल मीडिया… फिर भी हर दिन किसी त्योहार से कम नहीं लगता था.
सुबह की पहली किरण के साथ ही मोहल्ले की गलियों में बच्चों की आवाज गूंजने लगती. किसी के हाथ में प्लास्टिक का बल्ला होता, तो कोई टेप से लपेटी हुई टेनिस बॉल लेकर आ जाता.

मैदान न हो तो गली ही क्रिकेट का स्टेडियम बन जाती. कभी गिल्ली-डंडा, पिट्ठू, खो-खो, कांटा-रेस जैसे खेल शुरू हो जाते, तो कभी पतंगबाजी में पूरा आसमान रंग-बिरंगा दिखाई देता.

दोपहर की तपती गर्मी में भी बच्चों की मस्ती खत्म नहीं होती थी. आम के पेड़ों पर चढ़कर कच्चे आम तोड़ना, छत पर पानी से भरे टब में बैठना या घर के अंदर सांप-सीढ़ी और लूडो खेलना, सब कुछ उतना ही मजेदार लगता, जितना आज किसी वीडियो गेम को खेलना.

टीवी भी उस समय पूरे परिवार का एक साथ जुड़ने का जरिया था. रविवार की सुबह का मतलब सिर्फ छुट्टी नहीं, बल्कि ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ देखना होता था.

टीवी पर आने वाले हर शो का इंतजार घड़ी देखकर किया जाता था, क्योंकि ‘रीप्ले’ का कोई कॉन्सेप्ट नहीं था.

कार्टून नेटवर्क, शक्तिमान, अलिफ लैला, मोगली और टॉम एंड जेरी जैसे शोज बच्चों के लिए किसी खजाने से कम नहीं थे.

गर्मी की छुट्टियां आते ही तो जैसे पूरा बचपन खिल उठता. दादी-नानी की कहानियां, मिट्टी के खिलौने, साइकिल की रेस और छुपन-छुपाई के खेल- ये सब मिलकर बचपन को ऐसी यादें दे जाते थे, जो जिंदगी भर साथ रहती हैं.

आज भले ही बच्चों के पास स्मार्टफोन, टैबलेट और ढेर सारे गेम्स हों, लेकिन 90 के दशक का बचपन खास था क्योंकि उसमें मासूमियत, अपनापन और सादगी थी.
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उस दौर की दोस्ती सिर्फ ‘फ्रेंड लिस्ट’ तक सीमित नहीं थी बल्कि मिट्टी में खेलते-खेलते गहरी हो जाती थी.