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समुद्र के भीतर बिछी इंटरनेट केबल किसके कब्ज़े में है? सच जानकर उड़ जाएंगे होश!

Undersea Internet Cables Ownership in Hindi: आज इंटरनेट हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी ज़रूरत बन चुका है. सोशल मीडिया, ऑनलाइन शॉपिंग, वीडियो कॉल, ऑफिस का काम और मनोरंजन, सब इंटरनेट पर ही निर्भर है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इंटरनेट आता कहां से है?

कई लोग मानते हैं कि इंटरनेट सैटेलाइट या मोबाइल टावर से आता है लेकिन सच्चाई यह है कि दुनिया का लगभग 99% इंटरनेट समुद्र के नीचे बिछी ऑप्टिकल फाइबर केबल्स से होकर आता है. इंटरनेट का रास्ता आसमान से नहीं बल्कि समुद्र की गहराइयों से होकर गुजरता है.

इंटरनेट केबल्स का इतिहास
इंटरनेट केबल्स का इतिहास 1830 के दशक से शुरू होता है, जब टेलीग्राफ का आविष्कार हुआ. 1858 में अमेरिकी कारोबारी साइरस वेस्टफील्ड ने अटलांटिक महासागर के नीचे पहली टेलीग्राफ केबल बिछाई. हालांकि यह ज्यादा दिन नहीं चली लेकिन इसने संचार के नए युग की शुरुआत कर दी.
1866 में पहली स्थायी अंडरसी केबल सफलतापूर्वक लगाई गई और धीरे-धीरे पूरी दुनिया टेलीग्राफ, टेलीफोन और फिर इंटरनेट से जुड़ गई.

कितनी हैं ये समुद्री इंटरनेट केबल्स?
आज दुनिया भर में करीब 14 लाख किलोमीटर लंबी अंडरसी इंटरनेट केबल्स बिछी हुई हैं, जो देशों को आपस में जोड़ती हैं. भारत में भी इंटरनेट का 95% हिस्सा इन्हीं समुद्री केबल्स से आता है. वर्तमान में भारत से होकर 17 इंटरनेशनल केबल्स गुजरती हैं. ये केबल्स देश के 14 समुद्री स्टेशनों से जुड़ी हैं.
प्रमुख स्टेशन: मुंबई, चेन्नई, कोचीन, तूतीकोरिन और त्रिवेंद्रम. यहीं से केबल्स समुद्र की गहराई से निकलकर देश के हर हिस्से तक इंटरनेट पहुंचाती हैं.

समुद्र के नीचे इंटरनेट केबल का मालिक कौन है?
यह सबसे बड़ा सवाल है. अक्सर लोग सोचते हैं कि ये केबल्स सरकारों के नियंत्रण में होती हैं लेकिन हकीकत यह है कि इनका मालिक कोई भी सरकार नहीं होती बल्कि इन समुद्री इंटरनेट केबल्स का मालिकाना हक और जिम्मेदारी निजी टेलीकॉम और टेक कंपनियों के पास होता है. ये कंपनियां अरबों का निवेश करके केबल बिछाती हैं, उनका रखरखाव करती हैं और इंटरनेट डेटा को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाती हैं.

भारत में प्रमुख कंपनियां
टाटा कम्युनिकेशंस
रिलायंस जियो
भारती एयरटेल
सिफी टेक्नोलॉजीज
BSNL

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
गूगल, फेसबुक (Meta), अमेज़न और माइक्रोसॉफ्ट जैसी टेक दिग्गज कंपनियां भी अपने-अपने अंडरसी केबल्स बिछा चुकी हैं. इन कंपनियों का मकसद दुनिया भर में तेज़ और भरोसेमंद इंटरनेट पहुंचाना है.

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क्यों जरूरी हैं ये केबल्स?
तेज़ स्पीड: सैटेलाइट से कई गुना तेज़ इंटरनेट स्पीड मिलती है.
लो लेटेंसी: रियल-टाइम वीडियो कॉल, गेमिंग और स्ट्रीमिंग के लिए जरूरी.
ग्लोबल कनेक्टिविटी: दुनिया का हर हिस्सा एक-दूसरे से जुड़ा रहता है.

तो अगली बार जब आप इंटरनेट का इस्तेमाल करें, तो याद रखिए आपका डेटा हवा में नहीं, बल्कि समुद्र के नीचे हजारों किलोमीटर लंबी फाइबर ऑप्टिक केबल्स से होकर गुजर रहा है. और इनका मालिक कोई सरकार नहीं बल्कि बड़ी टेक और टेलीकॉम कंपनियां हैं.

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