आखिर क्या चाहते हैं हम

सुबह उठ जाएं जो एक बार,
दिन भर जुटे रहते हैं हम,
न लेकर चैन की सांस,
घंटों काम करते रहते हैं हम.
आखिर क्या चाहते हैं हम…

अकेले थे आए, अकेले है जाना,
फिर क्यों भूल बैठे हैं आज मुस्कुराना,
खुशियां रहती हैं अब रूठी सी,
करीब रहने लगे हैं गम,
आखिर क्या चाहते हैं हम…

खुद की भी एक मासूम सी जिंदगी है,
कमाई से कहीं ज्यादा वो बड़ी है,
भूल गए कि तुम खुद हो एक अनमोल रत्न,
जिसके लिए जहां में लेने पड़ते हैं सो जन्म,
आखिर क्या चाहते हैं हम…
आखिर क्या चाहते हैं हम…

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