दूसरे कहते रहे आप ‘सास’ हैं मेरी, पर आप मेरे लिए यशोदा बन गई

जिस दिन ब्याह कर आई थी,मन में न जानें कितनी शंकाएं थी.कैसा होगा नया परिवार,ये सोच-सोच कर मन ही मन […]

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किनारे पर है कश्ती, फिर भी निकल नहीं पा रही हूं

उलझी हूं मैं खुद में,सुलझ नहीं पा रही हूं,किनारे पर है कश्ती,फिर भी निकल नहीं पा रही हूं. मन परेशान

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ये फरवरी, मार्च, अप्रैल का महीना, न जाने क्या रंग दिखलाता है…

ये फरवरी, मार्च, अप्रैल का महीनान जाने क्या रंग दिखलाता है,साल भर अच्छा रहने वाला दोस्तखुद ही दुश्मन बन जाता

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उलझनें तुम्हारी कोई नहीं समझेगा, उलझने को हर कोई, और उलझेगा!

उलझनें तुम्हारी कोई नहीं समझेगा,उलझने को हर कोई, और उलझेगा.क्या बीत रही है तुम पर,जानबूझ कर कोई नहीं पूछेगा.बताना भी

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जानने दो सबको कि हर महीने, जिस्म से तुम कितना खून बहाती हो!

क्यों आती है शर्म तुम्हें,तुम क्यों छिपाती हो,जानने दो सबको कि हर महीनेजिस्म से तुम कितना खून बहाती हो? आने

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मुझे सफल खुद से ज्यादा, दूसरों के लिए होना है!

मुझे सफल खुद से ज्यादा, दूसरों के लिए होना है,जिनकी नजर में मेरी मेहनत मिट्टी का खिलौना है.वो जिन्होंने देखी

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ऐ इंसान तू भी क्या कमाल है, आंखों पर तेरी कैसे भ्रमों का जाल है

ऐ इंसान तू भी क्या कमाल है,आंखों पर तेरी कैसे भ्रमों का जाल है?खुद को कभी सिख, हिंदू तोकभी कहता

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