सुनो न… वो पापा की परी समझदार हो गई है,
जो घंटों मायके में सोया करती थी,
वो जल्दी उठने वाले लोगों में शुमार हो गई है,
हां, पापा की परी समझदार हो गई है….
मां हाथों में चाय की प्याली लिए खड़ी जगाती रहती थी,
दादा-दादी के ताने सुनकर बेचारी सहम भी जाया करती थी,
आलस की आदत उसके लिए गुनहगार हो गई है,
हां, पापा की परी अब समझदार हो गई है….
चाचू देखते थे उसके नखरे,
घरों में मिलकर दोनों रखते थे सारे सामान बिखरे-बिखरे
बुआ अक्सर उसे मेला ले जाया करती थी,
आज अपने ही घर में रिश्तेदार हो गई है,
हां, पापा की परी अब समझदार हो गई है….
उठी जबसे घर से उसकी डोली है,
शैतान लाडली को पूरा घर कहता बड़ी भोली है,
बचपन वाले घर जाने के लिए वो इजाजत की तलबगार हो गई है,
हां, पापा की परी अब समझदार हो गई है….
पापा के जिन कांधों पर बैठकर देखा उसने जहां है,
उनको भी मासूम है कि बेटी का ससुराल उसकी दुनिया है,
लाडो-लाडो कहते-कहते वो जिम्मेदारियों की हकदार हो गई है,
हां, पापा की परी अब समझदार हो गई है….
चुन-चुन कर खाती थी जो सब्जियां,
पसंद उसे अब करेला, भिंडी और मेथी आती है,
नया घर-बार पाकर, उसे संवारने में शुमार हो गई है,
हां, पापा की परी अब समझदार हो गई है….
जिसने जोड़ी न थी खुद को मिलने वाली पॉकेट मनी,
अब लगाने लगी है हिसाब घड़ी-घड़ी,
सब्जी लेने वो अब बाजार जाती है,
मॉल्स की महंगी चीजें उसे अब नहीं भाती हैं,
जिम्मेदारियों की लाइनें उसकी जिंदगी में बेशुमार हो गई हैं,
हां, पापा की परी अब समझदार हो गई है….
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