पेंसिल की नोक तोड़कर हंसना,
गुड्डे-गुड़ियों की शादी रचाना.
गली में छुपन-छुपाई खेलना,
रेडियो पर गाने सुनकर गुनगुनाना.
छतों पर लेटकर तारे न अब गिने जाएंगे,
वो बचपन के दिन फिर लौटकर न आएंगे…
स्कूल की घंटी बजते ही दौड़ लगाना,
टिफ़िन में दोस्त का पराठा चुराना.
टीचर की डांट पर भी खिलखिलाना,
कॉपी के पीछे कार्टून बनाना.
होमवर्क न करने के बहाने न ढूंढे जाएंगे,
वो बचपन के दिन फिर लौटकर न आएंगे…
रंग-बिरंगी कॉमिक्स पढ़ना,
सुपरहीरो की दुनिया में जीना.
नागराज, चाचा चौधरी, पिंकू-बिल्लू,
दूध को बचाना कहीं पी न जाए बिल्लू.
रूठे दोस्त न फिर मनाए जाएंगे,
वो बचपन के दिन फिर लौटकर न आएंगे…
वीडियो गेम की छोटी-सी कैसेट,
टीवी पर सिर्फ़ एक चैनल की रेस.
संडे को शक्तिमान का इंतज़ार,
नन्हे सपनों में बसता संसार.
दादा की साइकिल पर न घूम पाएंगे,
वो बचपन के दिन फिर लौटकर न आएंगे…
बरसात में कागज़ की नाव बहाना,
आम के पेड़ पर चढ़कर आम चुराना.
पतंग की डोरी से छतें भर जाना,
हारने पर भी मुस्कुराना.
वो खूबसूरत लम्हे न मिल पाएंगे,
वो बचपन के दिन फिर लौटकर न आएंगे…
त्योहारों की रौनक अलग ही थी,
दीपावली पर घर महकता था.
होली के रंग, मिठाइयों की महक,
हर दिल में अपनापन रहता था.
पैसे बड़े-बुजुर्गों से न पाएंगे,
वो बचपन के दिन फिर लौटकर न आएंगे…
आज ज़िंदगी भागती रेल-सी हो गई,
हंसी-खुशी सब फाइलों में खो गई.
न वो बेफिक्र शाम, न वो रंगीन सवेरा,
अब तो बस यादों में मिलता है डेरा.
भीगी आंखों से सब फिर काम में लग जाएंगे.
वो बचपन के दिन फिर लौटकर न आएंगे…