तुम घने जंगल,
तो लकड़ी हूं मैं,
तुम लहराते सागर,
तैरती इक मछली हूं मैं.
भूलकर न गई तेरी नजर,
बनारस की वो गली हूं मैं,
फूल-फूल मंडराने वाले भंवरे,
सपनों भरी तितली हूं मैं.
होगा तू कोई खिला फूल,
मासूम इक कली हूं मैं.
चेहरे देख तेरे हजार,
जलन में जली हूं मैं.
उठी न तेरे दिल में कभी,
हां वो खलबली हूं मैं,
महसूस कर ये चाहतें,
नादां नहीं जरा चुलबुली हूं मैं.
बहुत ही सुंदर कविता है!
Fanatics sir🙏🙏
Halki fulki gudgudaati ,kuch alag hi hain ye kavitaayen.