uljhanen tumhari koi nahi s

उलझनें तुम्हारी कोई नहीं समझेगा, उलझने को हर कोई, और उलझेगा!

उलझनें तुम्हारी कोई नहीं समझेगा,
उलझने को हर कोई, और उलझेगा.
क्या बीत रही है तुम पर,
जानबूझ कर कोई नहीं पूछेगा.
बताना भी चाहोगे किसी से दिल की बात,
बिना सुने वो पहले ही फूट-फूट रोयेगा.
उलझनें तुम्हारी कोई नहीं समझेगा,
उलझने को हर कोई, और उलझेगा.

मतलबी दुनिया की यही रीत है,
हर कोई आपका झूठा मीत है.
कौन अपना है, कौन पराया है,
यहां कौन किसी को समझ पाया है.
जिसे भी समझोगे हमदर्द अपना,
पीठ पर छुरा उसी ने घुसाया है.
हंसकर तुमसे हर कोई मिलेगा,
उलझनें तुम्हारी कोई नहीं समझेगा,
उलझने को हर कोई, और उलझेगा.

तुमसे इश्क़ किया तो जाना है….

मत बताओ किसी से अपने दिल की बात,
सुनने वाले 4 और लोगों से उड़ाएंगे उपहास.
दुखी हो जाता है कभी-कभी मन,
चीखने-रोना का करता है.
कोई बिना सोचे-समझे,
कितनी आसानी से रोंदू कह देता है.
ये झूठे प्यार का दौर हमेशा चलेगा,
उलझनें तुम्हारी कोई नहीं समझेगा,
उलझने को हर कोई, और उलझेगा.

बाहरी लोगों को हर कदम पर देते हैं मात,
फिर क्यों खुद के मन की नहीं सुलझा पाते बात.
सब कुछ छोड़ कर भाग जाने का मन करता है,
तुम कमजोर नहीं हो, ये वही अंर्तमन कहता है.
कठिन इस जिंदगी की जंग है,
टूटा है हर शख़्स, शांति उसकी भंग है.
बनकर सहारा कभी कोई नहीं उतरेगा,
उलझनें तुम्हारी कोई नहीं समझेगा,
उलझने को हर कोई, और उलझेगा.

एक छोटी सी कहानी है, जो सबको सुनानी है

क्या तुम्हारा मन भी करता ये गिला है,
बाकियों से कम मिला है,
सुनो कभी ध्यान देना,
जितना तुम्हें मिला, उतना भी तो कइयों को नहीं मिला है.
जानते हैं हर बार मजबूत कर टूट गए हो,
समझाओ खुद को कि शेर हमेशा लड़ा है, फिर लड़ेगा,
उलझनें तुम्हारी कोई नहीं समझेगा,
उलझने को हर कोई, और उलझेगा.

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