जिंदगी

जिंदगी…चलो एक बार आज फिर जी लो…

जिंदगी… जानती हूं कि आजकल की भागदौड़ की दुनिया में, आगे निकलने और पैसे कमाने की रेस में आपके पास कुछ पढ़ने का एक मिनट का भी समय नहीं है… या यूं कहें कि कई बार समय होकर भी आप पढ़ना नहीं चाहते…या चकाचौंध भरी दुनिया में अपनी आंखों को तकलीफ नहीं देना चाहते…

खैर छोड़िए… जिंदगी आपकी…तो फैसले भी आपके ही होंगे न…पर कभी ये नहीं लगता कि आपको भी 2 पल सुकूं के चाहिए…कितना यार …और कितना दूसरों के लिए आप जियेंगे…
हां हां… जानती हूं कि आप सिर्फ अकेले नहीं हैं…आपके पास परिवार है…जिम्मेदारियां हैं…और तो और…मैं यह भी जानती हूं कि इन सबके लिए जीने के साथ-साथ आपको खुद के लिए भी जीना है…

अच्छा चलो एक बात बताओ…खुद के लिए कब आपने खुद को अच्छे से तैयार किया था? लास्ट वो कौन सा दिन था, जब आपने यह सोचा था कि काम-धाम होते रहेंगे, चलो आज फोन, टीवी और शोर-शराबे से दूर चलते हैं कहीं? कोई ऐसी जगह या घर का ही वो कोना, जहां आप और सिर्फ आप ही रहे हों?

…नहीं याद आ रहा है न… कैसे याद आएगा? घर-परिवार, पढ़ाई, नौकरी, कमाई इन सबको हम इतना ज्यादा टाइम देने लगे हैं कि जब खुद की बारी आती है, तो अपने मन को कि चलो कभी और खुद को टाइम दे देंगे, यह समझाते हुए फिर काम-धाम में लग जाते हैं…गलत करते हैं आप. ऊपरवाले ने आपको कई जिम्मेदारियां दी हैं लेकिन उन जिम्मेदारियों में उसने आपसे आपका खुद का ख्याल रखने को भी कहा है.

हो सकता है कि पढ़ने में ये आपको बड़ी-बड़ी बातें लग रही हों पर खुद से कभी आपने मुलाकात करने के बारे में सोच है? कोई ऐसा शौक जो आपने हमेशा से पूरा तो करना चाहा हो लेकिन उम्र और जिम्मेदारियों के बोझ तले वो शौक कब दब गए हों, आपको खुद न पता चला हो. आपने कई बार पढ़ा-सुना होगा कि डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनता है और इंजीनियर का बेटा इंजीनियर ??? क्या लगता है आपको? कितनी सच्चाई होगी इसमें… पर आजकल ऐसा जरूरी नहीं है.

लिखते-लिखते कब मेरी कलम फिलॉसफी लिखने लगी…पता ही नहीं चल पाया…माफ कीजिएगा… वापस आपको आपकी खुद से मुलाकात के ट्रैक पर लाती हूं. मुझे याद है कि एक बार मेरे घर के पास होली में साउंड लगा था. मोहल्ले की किसी आंटी को कभी डांस करते न देखा था पर उस बार मोहल्ले की सभी आंटियों ने जो डांस किया न…बाई गॉड ऐसा लग रहा था कि कभी उन्हें किसी ने मंच नहीं दिया…शायद कभी उन्हें लोगों ने डांस करने के लिए बोला ही नहीं…शर्म और परिवार की जिम्मेदारी के घूंघट ने उनके पैरों में बेड़ियां डालकर रखा…

चलिए आपको आज आपकी बोरियत से दूर करती हूं…हाल ही में ट्विटर पर एक फोटो देखी… बहुत खास नहीं थी वो तस्वीर लेकिन जब देखा तो बिना डाऊनलोड किए मैं रह भी नहीं पाई…वैसे तो यह फोटो इंडियन एक्सप्रेस के फोटोग्राफर अनिल शर्मा की खींची हुई है लेकिन उनकी यह फोटो आपकी आंखों में न बस जाए तो कहना… यह फोटो किसी सेलिब्रिटी की नहीं है और न ही यह लोकेशन लग्जरी है… इन सबके बावजूद यह तस्वीर हमें एहसास करवा रही है कि हम आज कितना कुछ खो चुके हैं…हम बेफिक्री खो चुके हैं… हम सुकूं खो चुके हैं…इस दिखावे की दुनिया में महज दिखावा बनकर रह गए हैं…

स्कूल से वापस जा रही इस बच्ची को जब रास्ते मे बारिश मिली तो उसने छिपने के लिए कोई कोना या छांव को नहीं ढूंढा..उसने ये तक फिक्र न की कि अगर ड्रेस भीग गयी तो वह अगले दिन स्कूल कैसे जाएगी? आपका नहीं पता पर यकीं मानिए इस फोटो को देखकर दिल मे अजीब सी कसक उठी थी मुझे??? लगा कि क्या वाकई हम जिंदगी जी रहे हैं या बस काट रहे हैं?

कहां खो गई है वो हंसी, वो बेफिक्री जो हमें खुद के साथ मिलती थी? तब भी तो मां रेनकोट नहीं देती थी. बस एक पन्नी दे देती थी बैग बचाने के लिए. उनमें हम कितने खुश रहते थे. ऐसा नहीं है कि अब हमें ऐसा मौका नहीं मिलता है पर अब हम घर से निकलने से पहले खुद को ऐसे रेन कोट से लैमिनेट कर लेते हैं, जैसे कि आधार कार्ड को करवाया था. क्यों करते हैं ऐसा?

चलिए ऑफिस हो या फिर काम वाला दिन, इस बार अपनी सारी जरूरी चीजें चाहे ऑफिस से जुड़ी हों या पढ़ाई से जुड़ी, उन सबको दरकिनार कर बस एक बार बारिश का मजा इस स्कूल वाली बच्ची की तरह एन्जॉय करके देखिए.

देखिएगा कितना हल्का महसूस करेंगे. और ये जो आजकल आप माइग्रेन, एंजाइटी और डिप्रेशन के बारे में सुनते या महसूस करते हैं ना, यह मिनटों में गायब हो जाएगी… खुद को वक्त देना सीखिए… तभी आप दूसरों को वक्त दे पाएंगे…

चलिए…मिलते हैं ReadmeLoud के एक और नए जिंदगी और उसकी खुशियों से जुड़े टॉपिक पर लेकिन इस छोटी सी बच्ची ने आपको कैसे मोटिवेट किया, यह आप नीचे कमेंट करके जरूर बताइएगा…अगर आप चाहते हैं कि आपकी तरह औरों की टेंशन दूर हो जाए तो इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों में शेयर करें…

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