लिखना तो बहुत कुछ है,
पर लिख नहीं पा रही हूं,
ऐ मेरी नन्हीं जान, तुम हो मेरे अंदर,
बस यह अहसास जिए जा रही हूं.
मां-मां कहती फिरती रहती थी जो मैं आज तक,
अब खुद ही मां बनने जा रही हूं,
तुम आओगे या आओगी,
यह सोच कर मन ही मन खुश हुए जा रही हूं.
सुना था लोगों से
बिना मां बने एक स्त्री अधूरी होती है,
पर जब तुम आ रहे हो मेरी जिंदगी में,
ये खुशी मैं छिपा नहीं पा रही हूं.
मुझे आज भी याद है पहले
अल्ट्रासाउंड में तुम्हारी धड़कन को सुनना,
यकीन नहीं हुआ था
जब तुमने मुझे चुना तुम्हारी मां बनना.
दूसरे कहते रहे आप ‘सास’ हैं मेरी, पर आप मेरे लिए यशोदा बन गई
जिस दिन तुम्हारे होने की मिली थी खबर,
मानो रहने लगी मैं हर पल बेसबर.
मन किया सबको बताऊं,
पर मां बोली- अभी नहीं, लग जाती है नजर.
जो पसंद नहीं वो भी खाने लगी,
पसंदीदा चीजों से थी नजरें चुराने लगी.
हंसते-हंसते आ जाए कभी रोना,
तो कभी रोते हुए मैं मुस्कुराने लगी.
कांप सी जाती हूं,
जब याद आते हैं शुरू के 3 महीने,
सुबह-शाम की मैंने उल्टियां,
मुरझाई सी लगी थी रहने.
चलते-चलते कहीं भी
बैठ जाने का मन करता था,
हर खुशबू से हुई नफरत,
मन अजीब सा रहता था.
कभी रोती थी, कभी टूट जाती थी,
फिर मुझे याद तुम्हारी धड़कन आती थी.
चेहरे पर मुस्कान लेकर के
मानो फिर से चंगी-भली हो जाती थी.
सब कहते थे प्रेग्नेंसी के
शुरूआती 3 महीनों में यह सब होता है,
उड़ती हैं रातों की नींदें,
दिन का चैन-सुकून भी खोता है.
शुरू हुआ जब दूसरा ट्राईमेस्टर,
सुधरी मेरी हालत, पहले से हुई बेटर,
करने लगी सबसे नई-नई चीजों की डिमांड,
मोमोज-पिज्जा और पानी-पूरी समेत कई चटर-पटर.
किनारे पर है कश्ती, फिर भी निकल नहीं पा रही हूं
बड़े स्पेशल से निकलने लगे
मेरे अगले 3 महीने,
चेहरे पर रहने लगा अलग सा नूर,
खुशी का राज अब लगे थे लोग पूछने.
कुछ कर रही थी एक दिन मैं,
जब तुम्हें पहली बार मैंने महसूस किया.
लगा पेट में उड़ी तितलियां,
इधर से उधर किसी मेढक ने जंप किया.
मत पूछो कितनी खुशी मिली,
तुम्हारी पहली किक से थी मैं खिल उठी.
धीरे-धीरे तुमसे ऐसी मुलाकात के सिलसिले आम हुए,
तुम्हारी अगली किक के इंतजार में रहती थी बैठी.
फिर समय आया डॉक्टर से मिलने का,
किया चेकअप, पूछा मेरा हाल,
पर मैं तो ठहरी जरा बेसब्र,
जानना चाहती थी कैसी है मेरे अंदर पल रही जान.
पता है तुम्हें दवाइयों-इंजेक्शन,
इन सबसे नहीं था मेरा नाता,
तुम्हें पाने की खुशी में,
बेफिक्र होकर ये शरीर है लगवाता.
धीरे-धीरे तुम बड़े होने लगे,
देखकर मुझे लोग करने लगे बातें,
कोई देता बधाइयां तो
मां-दादी-चाची-भाभी सब थे समझाते.
खुशी का ठिकाना नहीं रहा मेरा उस दिन,
जब मैंने अपने टमी को हिलते देखा,
लगा ठहर जाए ये पल,
मानो सच में मैंने तुम्हें चलते देखा.
मेरी आवाज पर तुम्हारा किक करना,
एक अलग ही खुशी सा देता है,
पापा-दादी, नानी-मौसी की बातें सुनकर,
तुम्हारा दौड़ने लगाना उनको भी हंसा देता है.
एक छोटी सी कहानी है, जो सबको सुनानी है
तीसरे ट्राईमेस्टर में आते ही
होने लगी थी मुझे थकावट,
पर तुमको अंदर योगा करते देख,
होती थी अजीब सी गुदगुदाहट.
नहीं पता है तुम बेटा हो या बेटी हो,
मुझे तुमसे बेपनाह प्यार है,
हर किसी को अब तुम्हारी
प्यारी किलकारियों का ही इंतजार है.