देख पुरुष आज मैं किस हद तक बदल गई

तुमने मुझे चूड़ियां पहनाईं,
मैं मैरीकॉम बन गई.
तुमने मुझे पायल पहनाई,
मैं पी टी ऊषा बन गई.

6 मीटर की साड़ी में भी लपेटा, फिर भी सानिया मिर्जा बन गई.
तुमने मुझे कमजोर कहा,
फिर मैं गीता फोगाट बन गई.
तेरे ढाले हर रूप में ढल गई,
देख पुरुष आज मैं किस हद तक बदल गई.

जब-जब तुमने मुझे परीक्षा की आग में तपाया,
मेरे स्वरूप को खरे सोने से कम नहीं पाया.
बन कर सीता, नीरजा, प्रियंका, गीता,
बाबुल ही नहीं, तेरे आंगन को भी खुशियों से है सींचा.

अपनी मां, बहन और बेटी को तो तूने दिया प्यार,
फिर क्यों अनजान लड़की होती है तुम्हारी बेहूदगी का शिकार.
केवल एक दिन ही मत उठाओ इनके लिए सम्मान की आवाज,
साल के 364 दिन ही हैं इनकी इज्जत और मान के मोहताज….

महसूस कर ये चाहतें, नादां नहीं जरा चुलबुली हूं मैं

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