Pitru Paksha 2025: हर साल पितृ पक्ष आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तिथि तक मनाया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि इस अवधि में पितर धरती पर वास करते हैं और अपने वंशजों से तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान स्वीकार करते हैं. इस साल पितृ पक्ष 8 सितंबर से 21 सितंबर तक रहेगा.
गरुड़ पुराण के अनुसार, इस दौरान पितरों का तर्पण और पिंडदान करने से व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए श्रद्धाभाव से प्रतिदिन पितरों का श्राद्ध और तर्पण करना विशेष फलदायी माना गया है.
क्या पितृ पक्ष में पितरों को देखा जा सकता है?
अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता है कि क्या पितृ पक्ष के दौरान पितरों को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है. इस विषय में गरुड़ पुराण स्पष्ट रूप से कहता है कि पितरों को रोकर या शोक करके नहीं देखा जा सकता.
गरुड़ पुराण श्लोक का पाठ है जरूरी
श्लेष्माश्रु बान्धवैर्मुक्तं प्रेतो भुङ्क्ते यतोऽवशः ।
अतो न रोदितव्यं हि तदा शोकान्निरर्थकात् ॥
यदि वर्षसहस्त्राणि शोचतेऽहर्निशं नरः ।
तथापि नैव निधनं गतो दृश्येत कर्हिचित् ॥
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्भुवं जन्म मृतस्य च ।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न शोकं कारयेद् बुधः ॥
न हि कश्चिदुपायोऽस्ति दैवो वा मानुषोऽपि वा ।
यो हि मृत्युवशं प्राप्तो जन्तुः पुनरिहाव्रजेत् ॥
अवश्यं भाविभावानां प्रतीकारो भवेद्यदि ।
तदा दुःखैर्न युज्येरन् नलरामयुधिष्ठिराः ॥
नायमत्यन्तसंवासः कस्यचित् केनचित् सह ।
अपि स्वस्य शरीरेण किमुतान्यैः पृथग्जनैः ॥
पितरों के लिए रोना वर्जित
गरुड़ पुराण में लिखा है कि पितरों के लिए रोना वर्जित है. यदि कोई व्यक्ति पितरों के लिए आंसू बहाता है, तो पितर उन आंसुओं का पान करते हैं. भगवान विष्णु ने गरुड़ जी से कहा कि पितरों के लिए शोक करना उचित नहीं है. यदि कोई व्यक्ति वर्षों तक भी रोता रहे, तब भी उसे मृतक (पितर) के दर्शन नहीं हो सकते. इस जगत में जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है. यही जीवन का शाश्वत सत्य है.
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मृत्यु और पुनर्जन्म पर विचार
भगवान विष्णु ने कहा है कि ऐसा कोई दैवीय या मानवीय उपाय नहीं है, जिससे मृत व्यक्ति दोबारा पृथ्वी पर लौट सके. अगर ऐसा संभव होता, तो भगवान राम, नल और युधिष्ठिर जैसे महापुरुष भी अपने प्रियजनों से वियोग का दुःख न सहते.
गरुड़ पुराण का निष्कर्ष है कि इस संसार में कोई भी सदा के लिए नहीं रहता. हर जीव का जन्म और मृत्यु निश्चित है, और यही जीवन का अनिवार्य नियम है. पितृ पक्ष में अपने पितरों को श्रद्धा और भक्ति से याद करना चाहिए, तर्पण और पिंडदान से उन्हें तृप्त करना चाहिए. लेकिन शोक और आंसू बहाने से पितर प्रसन्न नहीं होते, बल्कि उनकी आत्मा दुखी होती है.
Disclaimer: ऊपर दी गई जानकारियां धार्मिक मान्यताओं-परंपराओं के अनुसार हैं. Readmeloud इनकी पुष्टि नहीं करता है.