जमाने से हो रही हूं तन्हा,
अब आकर मिल मुझे तू कान्हा.
गोपियां तू हजार दिल में बसाना,
मुझे कभी भी न भुलाना.
होकर बेफिक्र जमाने के तानों से,
रिझा ना मुझे मुरली के तरानों से.
बैठूं फिर में यमुना के तीरे,
बंशी बजाना तू धीरे-धीरे.
जाऊं जो भरने पानी पनघट पर,
मारना कंकड़िया तू मटके पर.
लगी है मुझे तेरी ऐसी अगन,
प्रीत कर तुझसे हूं मैं तुझमें मगन.
तेरी चोट का हर दर्द मुझे मंजूर है,
चढ़ा कान्हा मुझपर बस तेरा ही सुरूर है.
करना प्रेम मुझे भी पूरा, न की आधा,
बसा के तुझे तन-मन में, मैं भी हो गई हूं राधा.
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