नहीं होता है हर शख्स बुरा, आज भी लोगों में बची है ‘ईमानदारी’,
किसी के साथ तुम न करो गलत, कठिन समय बस ऊपरवाले की परीक्षा है तुम्हारी…
आप सोच रहे होंगे कि यह लाइनें मैं आपको क्यों सुना रहा हूं. खैर…ऊपर की शायरी पढ़कर आप यह तो समझ ही गए होंगे कि यहां बात मैं ईमानदारी की कर रहा हूं…गलत नहीं सोच रहे हैं. बात ही कुछ ऐसी है कि आपसे शेयर किए बिना नहीं रह पा रहा हूं. कभी-कभी सोचता हूं कि जिसके बारे में मैं आज यह सब लिख रहा हूं, अगर वह शख्स उस दिन मुझे न मिला होता तो आज क्या होता. चलिए आज मैं आपको उस शख्स के बारे में बताता हूं, जिसके जैसे अगर सभी इंसान हो जाएं तो जो लोगों का दूसरों पर से भरोसा उठ गया है, वह शायद वापस आ जाएगा.
सभी जानते हैं कि आजकल की दुनिया कैसी है. दूसरों पर तो दूर यहां आजकल लोग अपनों पर भी भरोसा करने से डरने लगे हैं. हर इंसान आज के समय में इतना धूर्त और चालाक हो गया है कि सिर्फ अपना फायदा देखता है. इस झूठ और फरेब की दुनिया में अगर लोगों को मदद करने का मौका मिलता भी है तो कई बार लोग यह सोंचकर नहीं करते हैं कि कहीं दांव उल्टा न पड़ जाए पर जिस शख्स की बात मैं कर रहा हूं, उसने यह साबित कर दिया कि बुराई भरी इस दुनिया में आज भी ईमानदारी और सच्चाई जिंदा है. आज भी कुछ लोग ऐसे इस धरती पर मौजूद हैं, जिन्हें न केवल सामने वाले का दर्द पता है बल्कि वह भी समझते हैं कि अगर वह आज किसी के साथ अच्छा करेंगे तो कल को उनके साथ भी अच्छा ही होगा.
मैं दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहता हूं. बात 18 जनवरी की है. 19 जनवरी को मेरे दोस्त की शादी कानपुर थी. बचपन का दोस्त था. इंगेजमेंट में न जाने की वजह से नाराज था तो शादी में तो हर हाल में पहुंचना था. उधर ऑफिस वालों का अलग से प्रेशर. खैर किसी तरह 18 जनवरी को ऑफिस खत्म करके वापस घर के लिए दिल्ली निकला. रात में साढ़े 8 बजे घर पहुंचते ही दिल्ली स्टेशन के लिए निकल गया. मां ने फटाफट जरूरी सामान पैक किया और ध्यान रखने की बात कही. जनवरी में दिल्ली की ठंड का हाल तो आप जानते ही हैं. किसी तरह दिल्ली स्टेशन से कानपुर के लिए ट्रेन पकड़ी.
घर पर मां और वाइफ थे. दोनों रात में बीच-बीच में कॉल करके हालचाल ले रहे थे. ऐसा नहीं है कि मैं बाहर नहीं जाता पर परिवार को तो आप जानते ही हैं. अब जब बात बेटे के बाहर जाने की आती है तो मां लोगों को तो जानते ही हैं. उनको मेरे कानपुर पहुंचने तक का हर अपडेट चाहिए था. बड़ी मुश्किल से मैंने उनसे सोने की बात कही. साथ ही वाइफ से कह दिया कि वो मुझे सुबह 5 बजे उठा दें. ट्रेन 6 बजे के करीब कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर पहुंचनी थी. फिर मैं चुपचाप सो गया.
ट्रेन में छूट गया मेरा मोबाइल
मोबाइल में अलार्म तो लगा था पर ठीक उसके बजने से पहले वाइफ का फोन आ गया कि उठो, स्टेशन आने वाला है. दरअसल, कानपुर सेंट्रल से पहले एक स्टेशन पड़ता है, जिसका नाम पनकी है. यहां से मेरा घर थोड़ा पास पड़ता है. मैंने सोचा कि इतनी दूर क्यों जाऊं. क्यों न यहीं पर उतर जाऊं. यह आइडिया आते ही मैंने वाइफ से फोन रखने की बात कही. सारा सामान भी रखा. मैंने ग्लव्स पहन रखे थे. उतरने से पहले मैंने सीट पर बैठे-बैठे अपने फोन को जैकेट की पॉकेट में रखना चाहा और पनकी स्टेशन पर ही उतर गया. पनकी पर ट्रेन बहुत ज्यादा देर नहीं रुकती है. मैं तो उतर गया पर मेरा मोबाइल सीट पर ही छूट गया. ग्लव्स की वजह से मुझे एहसास ही नहीं हुआ.
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आशीष पाल को मिला खोया फोन
तभी मेरी वाइफ ने मेरे नंबर पर कॉल की. दो बार तो फोन उठा ही नहीं पर जब तीसरी बार उठा तो आशीष पाल नाम के शख्स ने उठाया और बताया कि यह फोन छूट गया है. ट्रेन भी चल चुकी है. यह सुनते ही सबसे ज्यादा मां परेशान हो गईं. इधर घर पर तो सब टेंशन में थे ही, उधर ऑटो में जब मुझे याद आया तो मैं भी परेशान हो गया. इतने में मेरी वाइफ ने आशीष पाल जी को दोबारा कॉल करके बताया कि वह फोन मेरा है और मैं भूल गया हूं. तब आशीष जी ने कहा कि परेशान होने की जरूरत नहीं है. वह भी कानपुर में किसी काम से आए हैं. वह फोन को वापस कर देंगे. आशीष जी ने कहा कि अगर मैं आधे घंटे में कानपुर सेंट्रल पहुंचकर फोन रिसीव कर सकता हूं कर लूं पर अगर नहीं कर पाउंगा तो करीब 10 से 11 के बीच वह मेरे घर के तरफ फंक्शन में आएंगे और फोन दे देंगे.
बात यहां पर महज एक मोबाइल की नहीं है. बात यहां पर है कि आजकल अपने फोन में हर कोई न केवल जरूरी जानकारियां रखता है बल्कि उसके काम की हर छोटी-बड़ी चीज भी सेव होती हैं. बैंक की डिटेल्स हों या फिर तस्वीरें. ऑफिशियल से लेकर पर्सनल हर तरह की जानकारी आजकल लोगों के फोन में होती है. इसी के चलते हम सबका मूड खराब हो रहा था. हम सब टेंशन में थे कि अब क्या होगा. क्या वाकई फोन उठाने वाला इंसान फोन वापस कर देगा वगैरह-वगैरह.
आशीष ने की फोन वापस करने की बात
इसे किस्मत कहें या कुछ और…आशीष पाल जी ने बिना डरे और बिना सोचे समझे अपना नाम और पर्सनल मोबाइल नंबर मेरी वाइफ के साथ शेयर किया और कहा कि मैं उसपर कॉन्टैक्ट कर लूं. इधर ऑटो में मेरे पास भी फोन नहीं था. मैंने ऑटो वाले भैया से फोन लेकर मां के नंबर पर कॉल किया तो पता चला कि मेरा फोन आशीष पाल जी के पास सुरक्षित है. यह सुनते ही मेरे कलेजे को ऐसी ठंडक मिली कि मानो चिलचिलाती धूप में प्यासे को किसी ने ठंडा पानी पिला दिया हो. आप खुद सोचिए कि सुबह उठते ही आपका फोन जब नहीं मिलता है तो आप इतना परेशान हो जाते हैं तो यहां तो मेरा मोबाइल ट्रेन में छूट गया था. मुझे कितनी टेंशन हो रही थी. खैर कुछ देर में मैंने आशीष जी को ऑटो वाले भैया के नंबर से कॉल की तो उन्होंने मुझे फोन वापस कर देने की बात कही.
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तब तक मैं कानपुर वाले घर पहुंच गया था. सुबह के आठ बज चुके थे. उधर दिल्ली से मेरी वाइफ ने दो-तीन बार कॉल करके आशीष पाल जी को परेशान भी कर दिया था कि फोन कल तक मिल जाएगा. दरअसल, वह इसलिए परेशान थी क्योंकि मुझे 2 दिन कानपुर रुकना था और ऐसे में मैं मां और उसको अपडेट्स कैसे दे पाता. इधर मेरे घर में सबको 10 बजे का इंतजार था कि आशीष पाल जी का कॉल आए और मैं फोन लेने जाऊं. सुबह से किसी से बात नहीं हो पाई थी. इधर जिस दोस्त की शादी थी, वह भी बार-बार कॉल कर रहा था. वहीं, परिवार के अन्य लोग भी मोबाइल के गुम होने पर परेशान हो गए थे.
वहीं, करीब 11 बजे के आसपास जैसे ही आशीष जी का कॉल आया मैं तुरंत फोन लेने पहुंचा. फोन पाते ही सबसे पहले मां को फोन करके बताया कि वह अब परेशान न हो. यह सुनते ही मेरी मां ने आशीष पाल जी को झोला भर-भर कर दुआएं देनी शुरू कर दी.
आशीष पाल जी जैसे लोग हैं मिसाल
आप सोच रहे होंगे कि इस बात से मैं इतना खुश क्यों हूं तो आपको बता दूं कि आजकल जहां महज 10-50 रुपयों के खातिर लड़ाइयां हो जाती हैं, एक कप चाय के पैसे चुकाने को लेकर दोस्तों में झगड़े हो जाते हैं, किसी को दिए हुए अपने ही पैसे मांगने से रिश्ते तक खराब हो जाते हैं, उस समय में आशीष जी का ईमानदारी भरा यह कदम मुझे आजीवन याद रहेगा. जरा सोचिए कि कहीं अगर यह फोन किसी अनपढ़ या ऐसे-वैसे के हाथ लग जाता तो वापस मिलने की बात भूल ही जाना चाहिए. कई बार तो पढ़े-लिखे लोग भी 2-3 हजार के लालच में सामने वाले की जरूरत नहीं समझते. उन्हें किसी के परेशान होने से कोई फर्क नहीं पड़ता पर आशीष पाल जी ने समझा कि मैं न तो फैमिली से कॉन्टेक्ट कर पाउंगा, न कुछ. उन्होंने एक बेटे की तरह सोचा और मुझे फोन वापस किया. मैंने अपनी जिंदगी में ऐसे बहुत ही कम लोग देखे हैं, जो इस तरह की अच्छाइयां करते हैं.
जब मैं आशीष पाल जी से फोन लेने के लिए पहुंचा तो उन्होंने न तो मुझसे किसी तरह की डिमांड की और न ही फोन के साथ छेड़छाड़. मैंने अक्सर देखा है कि किसी की मदद करने के बदले में लोग कुछ न कुछ मांगते हैं लेकिन आशीष जी की ईमानदारी ने साबित कर दिया कि दुनिया उतनी बुरी नहीं है, जितना हम सोचते हैं. कुछ लोग अच्छे आज भी मौजूद हैं. आशीष पाल जी जैसे लोग आज के लोगों के लिए मिसाल हैं कि दूसरों की परेशानी को समझिए. खत्म नहीं कर सकते हैं तो क्या हुआ, बढ़ाइए भी नहीं. आशीष पाल जी मैं हमेशा आपको याद रखूंगा और दोस्त जब कभी मौका मिला तो कानपुर में आपसे मिलूंगा भी.
दोस्तों ..जिसे आप महज एक घटना समझ रहे हैं, वह किसी की सच्चाई है. आशीष पाल जी की ईमानदारी जैसा कोई वाकया आपके साथ हुआ है तो उसे Readmeloud.in के साथ शेयर करिए. इसे आप ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाए ताकि लोगों को पता चल सके कि बुराई के बीच में आज भी अच्छाई जिंदा है.