life poem

एक बार फिर ‘खुद’ से मिला दे मुझे…

आज फिर वह लम्हा आया है,
जब मैंने खुद को बहुत तन्हा पाया है.

सबकुछ तो मेरे पास है,
फिर किस सुकून की तलाश है.

दिल बेचैन तो धड़कनें परेशान हैं,
मेरे आस-पास वाले इन बातों से अनजान हैं.

इस चेहरे की झूठी मुस्कान देखकर,
उन्हें खुशियों से भरा लग रहा मेरा जहान है.

दिल में उफन रहा कई सवालों का सागर है,
अजीब उलझनों का मेरे मन में भरा गागर है.

मेरे हर सवाल का खुदा जवाब दे मुझे,
एक बार फिर ‘खुद’ से मिला दे मुझे…

लफ्ज़ों से तुम कुछ कह ना पाओ, आओ मेरे हमसफर आओ
हां, मुझे तुमसे प्यार होने लगा है
हमारी चाहतों का ऐसा आगाज़ होगा…

4 thoughts on “एक बार फिर ‘खुद’ से मिला दे मुझे…”

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