chatukarita

ये फरवरी, मार्च, अप्रैल का महीना, न जाने क्या रंग दिखलाता है…

ये फरवरी, मार्च, अप्रैल का महीना
न जाने क्या रंग दिखलाता है,
साल भर अच्छा रहने वाला दोस्त
खुद ही दुश्मन बन जाता है.
दिन-रात मेहनत से जो बढ़ाते हैं कंपनियों को,
बढ़ आगे वो नहीं पाता है,
ये फरवरी, मार्च, अप्रैल का महीना
न जाने क्या रंग दिखलाता है.

बड़े कठिन होते हैं इन तीन महीनों के दिन,
कई लोगों में जग जाता है चाटुकारिता का जिन्न,
साल भर घिसकर मेहनत करने वाला
बार-बार अपने काम पर इतराता है,
पर चाटुकार कर्मचारी चाय पिलाकर,
उसके अरमानों पर पानी फेर जाता है.
ये फरवरी, मार्च, अप्रैल का महीना
न जाने क्या रंग दिखलाता है.

उलझनें तुम्हारी कोई नहीं समझेगा, उलझने को हर कोई, और उलझेगा!

ये बॉस भी न जाने कैसे प्राणी होते हैं,
नफरतों के बीज टीम में ये खुद ही बोते हैं.
काम को परिणामों से नहीं ये तोलते हैं,
पसंद उन्हें ये करते, जो इनकी झूठी तारीफ में बोलते हैं.
मुंह देखते रह जाते मेहनत करने वाले,
इंक्रीमेंट-प्रमोशन चाटुकार ले जाता है.
ये फरवरी, मार्च, अप्रैल का महीना
न जाने क्या रंग दिखलाता है.

HR वाले भी याद दिलाते हैं
कंपनी की वसूलों की,
फिर क्यों माफ कर देते हैं,
सारी गलतियां कुछ लोगों की,
करते जो मनमानी और छुट्टियां लेते भर भर हैं,
जीते हैं जिंदगी, बॉस समझता उन्हें अपना हमदर्द है.
घुटकर राह जाता है ईमानदार कर्मचारी,
दिल उसका मसोस कर राह जाता है,
ये फरवरी, मार्च, अप्रैल का महीना
न जाने क्या रंग दिखलाता है.

तुमसे इश्क़ किया तो जाना है….

क्षेत्र चाहे जो भी, पसंद सबको चापलूसी है,
काम से मतलब कम, करनी इनको भी कानाफूसी है,
दर्द तो उस शख्स का समझिए,
जो चापलूसी और जी-हुजूरी कर नहीं पाता है,
अपने काम मे अव्वल होकर भी मात हर बार खाता है.
इन्क्रीमेंट की चाह में बिना छुट्टियां लिए,
समय से पहले हर बार टारगेट तो पूरा कर ले जाता है,
लेकिन इनकी मेहनत की फसल घटिया इंसान काट ले जाता है.
ये फरवरी, मार्च, अप्रैल का महीना
न जाने क्या रंग दिखलाता है.

हर बार ये आस उसको रहती है,
ईमानदारी, मेहनत एक दिन रंग लाती है,
भूल जाते हैं बेचारे,
इसी वजह से कहां उनकी
किसी से भी बन पाती है.
गंदे जोक्स पर न उनको फूहड़ता से हंसना आता है,
न उनके परिवार वालों का जन्मदिन वो विश कर पाता है.
ये फरवरी, मार्च, अप्रैल का महीना
न जाने क्या रंग दिखलाता है.

एक छोटी सी कहानी है, जो सबको सुनानी है

कभी मिल जाए ईमानदार बॉस,
तो कंपनी वाले नखरे दिखाते हैं,
इंक्रीमेंट से ठीक पहले,
लकवे इन्हें मार जाते हैं,
साल भर मुनाफा उठाते हैं,
अप्रैल तक दहाड़ मार-मार रोते हैं.
पिसता इनमें हर बार वो मेहनतकश इंसान है,
जिसके कंधों पर जिम्मेदारियों का जहां है,
भरोसा उनका अपनी ही मेहनत से उठ जाता है,
ये फरवरी, मार्च, अप्रैल का महीना
न जाने क्या रंग दिखलाता है.

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