aman kabir helper varanasi

जिसका कोई नहीं होता है, उसका ‘अमन कबीर’ है…

Aman Kabir Story : अपने वो लाइन तो सुनी ही होगी कि ‘किसी की मदद करने के लिए धनवान होना जरूरी नहीं है. अगर दिल में मदद करने का इरादा हो तो आप मददगार बन सकते हैं. इसके साथ-साथ आपने यह भी सुना होगा कि जिसका कोई नहीं होता, उसका ऊपर वाला होता है लेकिन जब ऊपर वाला खुद नहीं आ सकता है तो वह अपना कोई दूत दूसरों की मदद के लिए भेज देता है. कुछ ऐसा ही मदद का मसीहा बन चुके हैं उत्तर प्रदेश के वाराणसी के ‘अमन कबीर’.

जैसा कि इनका नाम है, वैसा ही इनका काम भी है. अक्सर आपने अपने आसपास या फिर कहीं सड़कों के किनारे देखा होगा कि कोई लाचार पुरुष या महिला पड़ी हुई है. किसी की दाढ़ी बड़ी हुई है तो किसी के शरीर में कीड़े पड़ गए हैं. किसी को घर से निकाल दिया गया है तो किसी की लाश को कंधा देने वाला तक कोई नहीं है लेकिन वाराणसी की सड़कों से लेकर गलियों तक, अमीर घरों से लेकर के पुराने फटे हाल में रहने वाली झोपड़ियों के लोगों तक, दूसरे राज्यों से भटककर काशी पहुंच जाने वालों तक, अगर किसी का कोई नहीं है तो उनके लिए मदद का मसीहा बनकर साबित हुए हैं ‘अमन कबीर’.

एक छोटी सी कहानी है, जो सबको सुनानी है

लावारिसों को मिला अपना
जी हां, हर वह शख्स जिसे यह समाज नकार देता है, उसे देखने से घिन महसूस करता है, उन गरीबों, लाचारों और बेसहारों के लिए सहारा बनकर आगे आए हैं वाराणसी के ‘अमन कबीर’. ‘अमन कबीर’ आज से नहीं बल्कि कई सालों से वाराणसी के लावारिसों को अपना कर उनकी मदद कर रहे हैं. कई बार देखा जाता है कि अगर किसी को लाइलाज बीमारी हो गई है तो परिवार के उसे सदस्य को अस्पताल के बाहर फेंक आते हैं या कहीं सड़क के किनारे छोड़ आते हैं. सरकारी अस्पतालों के बाहर तो लावारिसों की लाइन लगी रहती है. यहां तक कि कई पैसे वाले लोग भी जानबूझकर उन्हें छोड़ आते हैं.

वाराणसी के मसीहा हैं कहलाते
ऐसे में ‘अमन कबीर’ यह नहीं देखते कि वह उनका अपना है भी या नहीं, उनके पास भले ही पैसे ना हो लेकिन दिल बहुत बड़ा है. वह तुरंत उसे इंसान की सेवा में लग जाते हैं और अपनी छोटी सी बाइक एंबुलेंस की सेवा से तुरंत से अस्पताल पहुंचाते हैं. किसी तरह चंदा इकट्ठा करके उसका इलाज तक करवाते हैं. जरा सा काम करने के बाद लोग थकावट की शिकायत करते हैं लेकिन वाराणसी के मसीहा कहे जाने वाले ‘अमन कबीर’ ऐसे बिल्कुल भी नहीं हैं. वह 24 घंटे सेवा के लिए तैयार रहते हैं.

बनारस में कई बार ऐसे लोग भी आते हैं, जिनके पास अपनों के ही अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं होते हैं लेकिन ‘अमन कबीर’ उनके लिए न केवल पैसे जुटाते हैं बल्कि उनका अपना बनकर दाह संस्कार तक करते हैं. हर वह लाचार इंसान जिसे अपनों ने ठुकरा दिया है, इस समाज ने नकार दिया है, ना खाने के लिए पैसा है, ना रहने के लिए छत है, शरीर को कई बीमारियों ने घेर रखा है, उनका हाल तक कोई पूछने वाला भी नहीं है लेकिन इन सब के लिए अगर कोई आगे आता है तो वह वाराणसी के ‘अमन कबीर’ हैं.

मदद के लिए तड़प उठता था अमन का दिल
बनारस के मददगार और मसीहा कहे जाने वाले अमन कबीर के बारे में जितनी ही तारीफ की जाए, वह कम है. वहीं, जब Readmeloud ने उनसे बातचीत की तो उन्होंने अपनी निस्वार्थ सेवा से जुड़ी कई बातों पर रोशनी डाली. अमन कबीर से जब Readmeloud की तरफ से सवाल किया गया कि आखिर उन्हें इस सेवा की कहां से प्रेरणा मिली, कब उन्होंने दूसरों की मदद करने का फैसला किया तो इस पर अमन कबीर ने जवाब दिया कि वह बचपन से ही दूसरों की मदद करने का शौक रखते थे. जहां कहीं भी उन्हें मौका मिलता था, वह दूसरों की मदद करने में जुड़ जाते थे. धीरे-धीरे जवाब बड़े होना शुरू हुए तो उन्होंने देखा कि कई बार सरकारी अस्पताल के बाहर लोग अपनों को छोड़ जाते हैं. यह वह समय होता है, जब लोगों को उनके अपनों की जरूरत होती है लेकिन वह उनके साथ नहीं होते. अमन कबीर ने बताया कि जब भी कभी वह सरकारी अस्पताल के पास से गुजरते थे तो वह देखते थे कि किसी का पैर टूटा हुआ है तो किसी को दिखाई नहीं दे रहा. किसी के सिर में कीड़े पड़े हुए हैं तो किसी का कोई अंग ही सड़ चुका है. ऐसे में उनका दिल तड़प उठता था कि आखिर लोग ऐसा कैसे कर सकते हैं? सरकारी अस्पताल के साथ-साथ जब वह कई बार बाहर निकलते थे तो सड़कों के किनारे लावारिसों को देखकर दुखी हो जाते थे.

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लावारिसों को मानते हैं अपना
अमन का कहना है कि जब उन्होंने ऐसे लोगों को देखा तो उन्होंने उनकी मदद करने का फैसला किया. इतना ही नहीं, जब वह लावारिस लोगों को ले जाकर सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाते थे तो उनसे उनका रिश्ता पूछा जाता था. अमन कबीर ने कहा कि बेशक वह उनके रिश्तेदार तो नहीं हैं लेकिन इंसान तो हैं और वह इंसानियत के रिश्ते के नाते उनका अस्पताल में ले जाकर भर्ती करवाते हैं. अमन कबीर ने बताया कि अगर कहीं पर कोई एक्सीडेंट हो जाता है तो कोई भी इंसान हाथ लगाने से डरता है. सिर्फ इसलिए कि जब वह उसे अस्पताल में भर्ती करवाएंगे तो पुलिस छानबीन में उनका नाम आएगा लेकिन अमन कबीर इन सब बातों से बिल्कुल भी नहीं डरते हैं. वह खुशी-खुशी समाज सेवक अमन कबीर के तौर पर अपना नाम लिखवा देते हैं. अमन कबीर का कहना है कि वह किसी भी लावारिस इंसान को लावारिस नहीं समझते हैं बल्कि अपना घर का इंसान समझ कर उसकी निस्वार्थ सेवा करते हैं.

अमन कबीर से जब पूछा गया कि क्या लोगों के घाव, कीड़े मकोड़े और गंदगी साफ करते हुए उनका मन खराब नहीं होता तो अमन कबीर ने कहा कि जब वह शुरुआती दौर में लोगों की मदद करते थे तो कई बार उन्हें उल्टी या मन खराब होने की परेशानी हुई लेकिन समय के साथ-साथ सब कुछ ठीक होता चला गया. उन्होंने कहा कि वह खुद को मजबूत बनाते गए और दूसरों की सेवा में अपना मन लगाते गए.

परिवार ने किया सपोर्ट
Readmeloud की तरफ से जब अमन कबीर से यह सवाल किया गया कि हर परिवार का सपना होता है कि उनके घर का बेटा कुछ अच्छी नौकरी करे. अच्छे से रहन-सहन रखे तो क्या उन्हें इन सब दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा? इस पर अमन कबीर कहते हैं कि यह हर परिवार की समस्या है. उनके पिताजी का भी सपना था कि वह नौकरी करें. बचपन में तो जब उन्हें गंगा सेवक के नाम से जाना जाने लगा तो जानबूझकर उनकी एक दुकान पर नौकरी लगवा दी गई थी हालांकि उनका मन वहां पर नहीं लगा और वह नौकरी छोड़कर फिर से लोगों की सेवा में जुट गए. परिस्थितिययां कुछ ऐसी बनीं कि उनके पिताजी का निधन हो गया और उनके परिवार में उनकी बड़ी बहन, एक छोटा भाई और मां ही बचे. इसे ईश्वर की मर्जी कहिए या फिर कुछ और… अमन कबीर के अंदर से सेवा भाव कहीं नहीं गया. किसी तरह से उन्होंने अपनी बड़ी बहन की शादी की और फिर दूसरों की सेवा में जुट गए. अमन कबीर का कहना है कि उनके पिताजी के गुजरने के बाद उनकी मां सबसे बड़ी सपोर्टर बनाकर साबित हुईं. उन्होंने कभी दूसरों की मदद के लिए उन्हें नहीं रोका.

पूरे बनारस के लोग करते हैं मदद
आगे अमन कबीर क्या कहना है कि भले ही उनके पास नौकरी नहीं है लेकिन यह शायद उनकी मदद का ही परिणाम है कि आज पूरे बनारस के लोग उनकी किसी न किसी तरह से मदद करते हैं. अमन कबीर का कहना है कि एक समय था जब उनके पास साइकिल तक नहीं थी लेकिन बनारस की पुलिस ने उन्हें बाइक एंबुलेंस दिलवाई. इतना ही नहीं वह उसमें पेट्रोल भरवाने का भी काम करते हैं. आज अमन कबीर को बनारस छोटे तबके से लेकर बड़े तबके के लोग जानते हैं. अमन कबीर ने कभी भी किसी बड़े राजनेता से मदद नहीं ली लेकिन उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, सपा नेता शिवपाल सिंह यादव से लेकर के कई अन्य लोगों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है. अमन कबीर बताते हैं कि सोशल मीडिया से लोग उन्हें मदद करते हैं. जिसकी जैसी इच्छा होती है, वह उनके अकाउंट में पैसा भेज देता है. इसी तरह से उनके घर का गुजारा भी चल रहा है.

मुझे सफल खुद से ज्यादा, दूसरों के लिए होना है!

खास बात तो यह है कि जब भी कोई विदेशी इंसान बनारस घूमने आता है और उसके साथ कोई समस्या हो जाती है, अगर उसके पैसे खत्म हो जाते हैं या वह किसी हादसे का शिकार हो जाता है तो अमन कबीर उसकी भी मदद करने से पीछे नहीं हटते हैं. किसी खोए शख्स को उसके परिवार से मिलाना हो, किसी की अर्थी को कंधा देना हो, किसी के बच्चों का इलाज करवाना हो या फिर किसी हादसे का शिकार हुए शख्स को अस्पताल पहुंचाना हो, सबके लिए अमन कबीर हाजिर रहते हैं. यहां तक की वह लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करते हैं. खुद भी शुरू से लेकर अब तक करीब 50 बार रक्तदान कर चुके हैं. वह लोगों से पैसा जुटाकर गरीब बच्चियों की शादी भी करवा चुके हैं.

लोगों से की यह खास अपील
अमन कबीर की आज के लोगों से बस एक गुजारिश है कि जहां कहीं भी कोई लाचार, असहाय या लावारिस नजर आए तो उसकी मदद जरूर करें. नहीं कर सकते हैं तो तुरंत आसपास की संस्थाओं को सूचित करें. आजकल तो सोशल मीडिया का जमाना है. यहां भी अपडेट कर सकते हैं ताकि जो लोग मदद करना चाहते हैं, वह कर सकें. उन्होंने कहा कि आजकल लोग तमाशबीन बनकर देखते रहते हैं लेकिन इसके बजाय मदद करें ताकि किसी को सहारा मिल सके. सबसे खास बात तो यह है कि अमन कबीर जाति-पाति, धर्म-मजहब देखकर मदद नहीं करते. वह सबको अपना मानते हैं.

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