आजादी का अमृत

बिलकिस बानो के दरिंदों पर बरसा ‘आजादी का अमृत’, बोली- हाय, यह कैसा न्याय?

जब वह सलाखों से बाहर निकले तो उनके चेहरे पर एक शिकन तक न थी… ऐसा लग रहा था कि मानों सजा नहीं, किसी तीर्थ से लौटकर आए हों… फिल्मों में तो गुंडों के नाम के पीछे ‘भाई’ लगता है लेकिन अपने असली नाम के पीछे ‘भाई’ जैसे पवित्र शब्द को लगाकर दागदार करने वाले ये दरिंदे मुस्कुराहट के साथ जेल से बाहर आए तो लोगों ने इनका ऐसे स्वागत किया, जैसे मानों जंग जीतकर आए हों. फूल-मालाएं पहनाई गईं…माथे पर तिलक किया गया…पैर छूकर आशीर्वाद लिया गया…

बस करो ऐ समाज, और कितना गिरोगे तुम सब…अरे वो दरिंदे हैं…कोई महापुरुष नहीं…थू ऐसे समाज पर जो रेप जैसे जघन्य अपराध करने वालों का भी ऐसा स्वागत करता है. अरे तुम्हारे घर वाले थे…किसी के बाप-भाई-दादा सब होंगे पर उससे पहले वो रेपिस्ट्स हैं… तुम सबको इनके जेल से रिहा होने की खुशी होगी ही पर जरा उन आंखों से पूछे, जिसने अपना सबकुछ खोने के बाद वह आखिरी उम्मीद भी खो दी, जिसने उसे भरोसा दिलाया था कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा. ऊपर पढ़ने के बाद आप समझ तो गए ही होंगे कि यह मामला देश के सबसे चर्चित रेप केस में से एक बिलकिस बानो का रेप केस है.

जी हां, गुजरात के सबसे जघन्य अपराधों की लिस्ट में बिलकिस बानो का रेप केस भी शामिल है पर अब शायद नहीं…कोर्ट ने बिलकिस के रेपिस्ट्स को रिहा जो कर दिया है. इस अगस्त को केंद्र सरकार की पहल पर पूरे देश में भारतीयों ने आजादी का अमृत महोत्सव मनाया. वैसे तो इसे पूरे देश में ही मनाया गया लेकिन आजादी का अमृत महोत्सव का असल अमृत तो बिलकिस बानो के सजायाफ्ता कैदियों पर बरसा. साल 2002 में गुजरात दंगों के दौरान न केवल बिलकिस बानो से रेप कर इन हैवानों ने उसकी जिंदगी छीनी थी बल्कि बिलकिस के परिवार के 7 लोगों को उसकी आंखों के सामने मौत के घाट उतार दिया था. और तो और इन मृतकों में बिलकिस बानो की तीन साल की मासूम बच्ची भी शामिल थी लेकिन खून और हवस के प्यासे भेड़ियों को उसपर भी कोई तरस नहीं आया था. उसको भी मार डाला था.

आजादी का अमृत

सजा नीति के तहत मिली माफी
बिलकिस बानो के रेप केस की जांच CBI ने की थी. फिर 2008 में बॉम्बे सेशन कोर्ट ने 11 लोगों को उम्र भर के लिए कैद की सजा सुनाई थी पर हैरानी की बात तो यह है कि गोधरा जेल में सजा काट रहे इन 11 रेपिस्ट को 15 अगस्त, 2022 को रिहा कर दिया गया है. इन सभी कैदियों को गुजरात सरकार की सज़ा माफ़ी की नीति के तहत माफ किया गया है. बिलकिस बानो के गैंगरेप के सभी 11 लोगों के जेल से छूटने के साथ ही न जाने कितनी ही रेप पीड़िताओं की न्याय पाने की उम्मीद को झटका सा लगा है. गंदी नजरों वाले हवस के भेड़ियों का शिकार हो चुकी और दर-दर न्याय की आस में भटक रही बेटियों की उम्मीद पर इन कैदियों की रिहाई वह काला धब्बा है, जो ताउम्र रगड़कर भी साफ नहीं होगा.

जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई
वो कहावत तो आपने सुनी ही होगी, जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई … कहने का मतलब है कि जब किसी के पैर में बिवाई फटी ही नहीं होगी, वह दूसरे का दुख क्या ही समझेगा…शायद गुजरात के गोधरा दंगों की गैंगरेप पीड़ित बिलकिस बानो का दर्द सिस्टम को दिखाई ही नहीं दिया. बिलकिस बानो के गैंगरेप के सभी गुनहगारों की रिहाई और फिर उनका फूल-मालाओं से स्वागत, दिखाता है कि आज समाज में अपराध के सामने खुद सिस्टम भी घुटने टेक कर खड़ा है. पर जरा सोच कर देखिए कि क्या वाकई रेप के दरिदों के लिए माफी जैसा कोई शब्द होना भी चाहिए? क्या रेप जैसे घिनौने अपराध के जिम्मेदार ये गुनहगार माफी के काबिल हैं?

5 महीने की गर्भवती को हैवानों ने नोंचा
यह सब बातें हो गईं, गैंगरेप के दोषियों की रिहाई की पर अब जरा उस कलेजे से पूछिए, जो 2002 से लेकर आज तक अपने लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रही थी, सिर्फ इसलिए क्योंकि उसे देश की कानून व्यवस्था पर पूरा भरोसा था. भरोसा था कि जिन दरिंदों ने उसके 5 महीने की गर्भवती होने के बावजूद उसे हैवानियत का शिकार बनाया था, उन्हें एक न एक दिन सजा जरूर मिलेगी. इसी के तलते बेचारी बिलकिस बानो सालों से न्याय के मंदिर कोर्ट के परिसर के चक्कर लगाते नहीं थक रही थी. जब भी पता चलता कि अगली हियरिंग आ गई है, उनकी आंखों में न्याय की लौ तेज हो जाती थी.

किसी ने नहीं समझा बिलकिस का दर्द
चलो इन बातों को भी आप भूल जाना चाहते हो तो भूल जाओ. जरा उन सवालों को सुनकर सबके सामने बताने से झेंपती उस बिलकिस का चेहरा ही याद कर लो, जो हर हियरिंग में उसके ही रेप के बारे में उनसे पूछे जाते रहे होंगे. कैसे सामना करती होगी, वह बेचारी जिसके साथ एक नहीं, दो नहीं, पूरे 11 दरिंदों ने दरिंदगी की सीमा लांघी. जरा सोच कर देखिए कि साल 2002 में जब 5 महीने की गर्भवती बिलकिस बानो को जब 11 हैवान नोच रहे होंगे तो उसके पेट में पल रही संतान भी कह रही होगी कि मौला, इस घिनौनी दुनिया में मुझे जन्म ही न देना…

कैसे दिए होंगे बिलकिस बानो ने जवाब
जरा सोचिए जिस दिन से बिलकिस के दिल पर उस हर सवाल के साथ क्या बीतती होगी, जब वह कोर्ट में सबके सामने अपने साथ हुई हैवानियत की दास्तां सुनाती होगी. बीबीसी में जारी बिलकिस बानो के बयान के मुताबिक गुजरात कोर्ट के 11 कैदियों की रिहाई के फैसले से बिलकिस बानो एकदम टूट सी गई हैं. उनका कहना है कि उन्हें अकेला छोड़ दिया जाए. वह पूरी तरह से सुन्न हो चुकी हैं. उनका कहना है कि किसी न्याय का अंत ऐसा कैसे हो सकता है? मैंने तो देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा किया था. इसी से मुझे जीने की हिम्मत मिलती थी. इससे केवल मेरे भरोसे को ही नहीं, देश की उन तमाम महिलाओं-लड़कियों के भरोसे को न्याय को लेकर चोट पहुंची है, जो अपने साथ हुए गलत काम के अपराधियों को सजा दिलाने के लिए प्रयास कर रही हैं. उन्होंने गुजरात कोर्ट से फैसला वापस लेने की अपील की है और परिवार की सुरक्षा की भी मांग की है.

कई दोषियों के नाम के आगे लगा है ‘भाई’
आपको जानकर हैरानी होगी कि बिलकिस बानो से गैंगरेप करने वाले सभी दोषियों के नाम के आगे भाई लगा हुआ है. भाई तो अपनी बहन का रक्षक होता है लेकिन गुजरात में हुए इस जघन्य अपराध में सभी भाइयों ने ही एक महिला की इज्जत तार-तार कर डाली. इन भाइयों के नाम हैं – जसवंत भाई, गोविंद भाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, केसर भाई, बांका भाई, राजू भाई, नितेश भट्ट और रमेश चंद्र. ये महज नाम ही नहीं, वह हैं, जिन्हें सजा न दिलवा पाने का दंश बेचारी बिलकिस मरते दम तक करती रहेगी.

बिलकिस बानो जैसी तमाम न्याय की आस खो चुकी पीड़िताओं के लिए तो बस अब ये चंद लाइनें ही याद आती हैं- सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे.

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